26-03-93  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

अव्यक्त वर्ष में लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ

आज निराकारी और आकारी बापदादा सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को आकार रूप से और साकार रूप से देख रहे हैं। साकार रूप वाली आप सभी आत्मायें भी बाप के सम्मुख हो और आकारी रूपधारी बच्चे भी सम्मुख हैं। दोनों को बापदादा देख हर्षित हो रहे हैं। सभी के दिल में एक ही संकल्प है, उमंग है कि-हम सभी बाप समान साकारी सो आकारी और आकारी सो निराकारी बाप समान बनें। बापदादा सभी के इस लक्ष्य और लक्षण को देख रहे हैं। क्या दिखाई दिया?

मैजॉरिटी का लक्ष्य बहुत अच्छा दृढ़ है लेकिन लक्षण कभी दृढ़ हैं, कभी साधारण हैं। लक्ष्य और लक्षण में समानता आना-यह निशानी है समान बनने की। लक्ष्य धारण करने में 99%  भी कोई हैं, बाकी नम्बरवार हैं। लेकिन सदा, सहज और नेचुरल नेचर में लक्षण धारण करने में कहाँ तक हैं-इसमें मेनॉरिटी 90%  तक हैं, बाकी और नम्बरवार हैं। तो लक्ष्य और लक्षण में और लक्षण को भी नेचुरल और नेचर बनाने में अन्तर क्यों है? समय प्रमाण, सरकमस्टांश प्रमाण, समस्या प्रमाण कई बच्चे पुरूषार्थ द्वारा अपने लक्ष्य और लक्षण को समान भी बनाते हैं। लेकिन यह नेचुरल और नेचर हो जाये, उसमें अभी और अटेन्शन चाहिए। यह वर्ष अव्यक्त फरिश्ता स्थिति में स्थित रहने का मना रहे हो। यह देख बापदादा बच्चों के प्यार और पुरूषार्थ-दोनों को देख-देख खुश होते हैं, ‘‘वाह बच्चे, वाह’’ का गीत भी गाते हैं। साथ-साथ अभी और आगे सर्व बच्चों के लक्ष्य और लक्षण में समानता देखना चाहते हैं। आप सब भी यही चाहते हो ना। बाप भी चाहते, आप भी चाहते-फिर बीच में बाकी क्या है? वह भी अच्छी तरह से जानते हो। आपस में वर्कशॉप करते हो ना!

बापदादा ने लक्ष्य और लक्षण में अन्तर होने की विशेष एक ही बात देखी। चाहे आकारी फरिश्ता, चाहे निराकारी निरन्तर, नेचुरल नेचर हो जाये-इसका मूल आधार है निरहंकारी बनना। अहंकार अनेक प्रकार का है। सबसे विशेष कहने में भल एक शब्द ‘देह-अभिमान’ है लेकिन देह-अभिमान का विस्तार बहुत है। एक है मोटे रूप में देह-अभिमान, जो कई बच्चों में नहीं भी है। चाहे स्वयं की देह, चाहे औरों की देह-अगर औरों की देह का भी आकर्षण है, वो भी देह-अभिमान है। कई बच्चे इस मोटे रूप में पास हैं, मोटे रूप से देह के आकार में लगाव वा अभिमान नहीं है। परन्तु इसके साथ-साथ देह के सम्बन्ध से अपने संस्कार विशेष हैं, बुद्धि विशेष है, गुण विशेष हैं, कोई कलायें विशेष हैं, कोई शक्ति विशेष है-उसका अभिमान अर्थात् अहंकार, नशा, रोब-ये सूक्ष्म देह-अभिमान है। अगर इन सूक्ष्म अभिमान में से कोई भी अभिमान है तो न आकारी फरिश्ता नेचुरल-निरन्तर बन सकते, न निराकारी बन सकते। क्योंकि आकारी फरिश्ते में भी देहभान नहीं है, डबल लाइट है। देह-अहंकार निराकारी बनने नहीं देगा। सभी ने इस वर्ष अटेन्शन अच्छा रखा है, उमंग-उत्साह भी है, चाहना भी बहुत अच्छी है, चाहते भी हैं लेकिन आगे और अटेन्शन प्लीज! चेक करो-’’किसी भी प्रकार का अभिमान वा अहंकार नेचुरल स्वरूप से पुरुषार्थी स्वरूप तो नहीं बना देता है? कोई भी सूक्ष्म अभिमान अंश रूप में भी रहा हुआ तो नहीं है जो समय प्रमाण और कहाँ सेवा प्रमाण भी इमर्ज हो जाता है?’’ क्योंकि अंश-मात्र ही समय पर धोखा देने वाला है। इसलिए इस वर्ष में जो लक्ष्य रखा है, बापदादा यही चाहते हैं कि लक्ष्य सम्पन्न होना ही है।

चलते-चलते कोई विशेष स्थूल रूप में-उस दिन, उस समय-कोई भूल भी नहीं करते हो लेकिन कभी-कभी ये अनुभव करते हो ना कि-’’आज वा अभी नामालूम क्या है जो जैसी खुशी होनी चाहिए वैसी नहीं है, ना-मालूम आज अकेलापन वा निराशा वा व्यर्थ संकल्पों का अचानक तूफान क्यों आ रहा है! अमृतवेला भी किया, क्लास भी किया, सेवा भी, जॉब भी किया-परन्तु ये क्यों हो रहा है?’’ कारण क्या होता है? मोटे रूप को तो चेक कर लेते हो और उसमें समझते हो कि कोई गलती नहीं हुई। लेकिन सूक्ष्म अभिमान के स्वरूप का अंश सूक्ष्म में प्रकट होता है। इसलिए कोई भी काम में दिल नहीं लगेगी, वैराग्य, उदास-उदास फील होगा। या तो सोचेंगे-कोई एकान्त के स्थान पर चले जायें, या सोचेंगे-सो जायें, रेस्ट में चले जायें या परिवार से किनारा कर लें थोड़े टाइम के लिए। इन सब स्थितियों का कारण अंश की कमाल होती है। कमाल नहीं कहो, धमाल ही कहो। तो सम्पूर्ण निरहंकारी बनना अर्थात् आकारी-निराकारी सहज बनना। जैसे कभी-कभी दिल नहीं होती कि क्या सदा एक ही दिनचर्या में चलना है, चेंज तो चाहिए ना? न चाहते भी यह स्थिति आ जाती है।

जब निरहंकारी बन जायेंगे तो आकारी और निराकारी स्थिति से नीचे आने की दिल नहीं होगी। उसी में ही लवलीन अनुभव करेंगे। क्योंकि आपकी ओरीजिनल अनादि स्टेज तो निराकारी है ना। निराकार आत्मा ने इस शरीर में प्रवेश किया है। शरीर ने आत्मा में नहीं प्रवेश किया, आत्मा ने शरीर में प्रवेश किया। तो अनादि ओरीजिनल स्वरूप तो निराकारी है ना। कि शरीरधारी है? शरीर का आधार लिया लेकिन लिया किसने? आप आत्मा ने, निराकार ने साकार शरीर का आधार लिया। तो ओरीजिनल क्या हुआ-आत्मा या शरीर? आत्मा। ये पक्का है? तो ओरीजिनल स्थिति में स्थित होना सहज या आधार लेने वाली स्थिति में सहज?

अहंकार आने का दरवाजा एक शब्द है, वो कौनसा? ‘मैं’। तो यह अभ्यास करो-जब भी ‘मैं’ शब्द आता है तो ओरीजिनल स्वरूप सामने लाओ-’मैं’ कौन? मैं आत्मा या फलाना-फलानी? औरों को ज्ञान देते हो ना-’मैं’ शब्द ही उड़ाने वाला है, ‘मैं’ शब्द ही नीचे ले आने वाला है। ‘मैं’ कहने से ओरीजिनल निराकार स्वरूप याद आ जाये, ये नेचुरल हो जाये तो यह पहला पाठ सहज है ना। तो इसी को चेक करो, आदत डालो-’मैं’ सोचा और निराकारी स्वरूप स्मृति में आ जाये। कितनी बार ‘मैं’ शब्द कहते हो! मैंने यह कहा, ‘मैं’ यह करूँगी, ‘मैं’ यह सोचती हूँ........-अनेक बार ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हो। तो सहज विधि यह है निराकारी वा आकारी बनने की-जब भी ‘मैं’ शब्द यूज़ करो, फौरन अपना निराकारी ओरीजिनल स्वरूप सामने आये। ये मुश्किल है वा सहज है? फिर तो लक्ष्य और लक्षण समान हुआ ही पड़ा है। सिर्फ यह युक्ति-निरहंकारी बनाने का सहज साधन अपनाकर के देखो। यह देहभान का ‘मैं’ समाप्त हो जाये। क्योंकि ‘मैं’ शब्द ही देह-अहंकार में लाता है और अगर ‘मैं’ निराकारी आत्मा स्वरूप हूँ- यह स्मृति में लायेंगे तो यह ‘मैं’ शब्द ही देह-भान से परे ले जायेगा। ठीक है ना। सारे दिन में 25-30 बार तो जरूर कहते होंगे। बोलते नहीं हों तो सोचते तो होंगे-’मैं’ यह करूँगी, मुझे यह करना है........। प्लैन भी बनाते हो तो सोचते हो ना। तो इतने बार का अभ्यास, आत्मा स्वरूप की स्मृति क्या बना देगी? निराकारी। निराकारी बन, आकारी फरिश्ता बन कार्य किया और फिर निराकारी! कर्म-सम्बन्ध के स्वरूप से सम्बन्ध में आओ, सम्बन्ध को बन्धन में नहीं लाओ। देह-अभिमान में आना अर्थात् कर्म-बन्धन में आना। देह सम्बन्ध में आना अर्थात् कर्म-सम्बन्ध में आना। दोनों में अंतर है। देह का आधार लेना और देह के वश होना-दोनों में अन्तर है। फरिश्ता वा निराकारी आत्मा देह का आधार लेकर देह के बंधन में नहीं आयेगी, सम्बन्ध रखेगी लेकिन बन्धन में नहीं आयेगी। तो बापदादा फिर इसी वर्ष में रिजल्ट देखेंगे कि निरहंकारी, आकारी फरिश्ते और निराकारी स्थिति में-लक्ष्य और लक्षण कितने समान हुए?

महानता की निशानी है निर्माणता। जितना निर्माण उतना सबके दिल में महान स्वत: ही बनेंगे। बिना निर्माणता के सर्व के मास्टर सुखदाता बन नहीं सकते। निर्माणता निरहंकारी सहज बनाती है। निर्माणता का बीज महानता का फल स्वत: ही प्राप्त कराता है। निर्माणता सबके दिल में दुआयें प्राप्त कराने का सहज साधन है। निर्माणता सबके मन में निर्माण आत्मा के प्रति सहज प्यार का स्थान बना देती है। निर्माणता महिमा योग्य स्वत: ही बनाती है। तो निरहंकारी बनने की विशेष निशानी है- निर्माणता। वृत्ति में भी निर्माणता, दृष्टि में भी निर्माणता, वाणी में भी निर्माणता, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी निर्माणता। ऐसे नहीं कि मेरी वृत्ति में नहीं था लेकिन बोल निकल गया। नहीं। जो वृत्ति होगी वो दृष्टि होगी, जो दृष्टि होगी वो वाणी होगी, जो वाणी होगी वही सम्बन्ध-सम्पर्क में आयेगा। चारों में ही चाहिए। तीन में है, एक में नहीं है-तो भी अहंकार आने की मार्जिन है। इसको कहा जाता है फरिश्ता। तो समझा, बाप-दादा क्या चाहते हैं और आप क्या चाहते हो? ‘चाहना’ दोनों की एक है, अभी ‘करना’ भी एक करो। अच्छा!

आगे सेवा के नये-नये प्लैन क्या बनायेंगे? कुछ बनाया है, कुछ बनायेंगे। चाहे यह वर्ष, चाहे आगे का वर्ष-जैसे और प्लैन सोचते हो कि भाषण भी करेंगे, सम्बन्ध-सम्पर्क भी बढ़ायेंगे, बड़े प्रोग्राम भी करेंगे, छोटे प्रोग्राम भी करेंगे-ये तो सोचते ही हो लेकिन वर्त-मान समय के गति प्रमाण अभी सेवा की भी फास्ट गति चाहिए। वो कैसे होगी? वाणी द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा तो सेवा कर ही रहे हो, मन्सा-सेवा भी करते हो लेकिन अभी चाहिए-थोड़े समय में सेवा की सफलता ज्यादा हो। सफलता अर्थात् रिजल्ट। उसकी विधि है कि वाणी के साथ-साथ पहले अपनी स्थिति और स्थान के वायब्रेशन्स पॉवरफुल बनाओ। जैसे आपके जड़ चित्र क्या सेवा कर रहे हैं? वायब्रेशन्स द्वारा कितने भक्तों को प्रसन्न करते हैं! डबल विदेशियों ने मन्दिर देखे हैं? आपके ही तो मन्दिर हैं ना! कि सिर्फ भारत वालों के मन्दिर हैं? आपके चित्र सेवा कर रहे हैं ना! तो वाणी द्वारा भल करो लेकिन अभी ऐसी प्लैनिंग करो, वाणी के साथ-साथ वायब्रेशन की ऐसी विधि बनाओ जो वाणी और वायब्रेशन डबल काम करे। वायब्रेशन बहुतकाल रहता है। वाणी से सुना हुआ कभी-कभी कइयों को भूल भी जाता है लेकिन वायब्रेशन की छाप ज्यादा समय चलती है। जैसे-आप लोग अपने जीवन में अनुभवी हो कि कोई का उल्टा वायब्रेशन अगर आपके मन में या बुद्धि में बैठ जाता है, तो उल्टा कितना समय चलता है! वायब्रेशन अन्दर बैठ जाता है ना। और बोल तो उसी समय भूल जायेगा लेकिन वायब्रेशन के रूप में मन और बुद्धि में छाप लग जाती है। और कितना समय उसी वायब्रेशन के वश, उस व्यक्ति से व्यवहार में आते हो? चाहे उल्टा हो, चाहे सुल्टा हो लेकिन वायब्रेशन मुश्किल से मिटता है।

लेकिन यह रूहानी वायब्रेशन्स फैलाने के लिए पहले अपने मन में, बुद्धि में व्यर्थ वायब्रेशन्स समाप्त करेंगे तब रूहानी वायब्रेशन फैला सकेंगे। किसी के भी प्रति अगर व्यर्थ वायब्रेशन्स धारण किये हुए हैं तो रूहानी वायब्रेशन्स नहीं फैला सकते। व्यर्थ वायब्रेशन रूहानी वायब्रेशन के आगे एक दीवार बन जाती है। चाहे सूर्य कितना भी प्रकाशमय हो, अगर सामने दीवार आ गई, बादल आ गये-तो सूर्य के प्रकाश को प्रज्ज्वलित होने नहीं देते। जो पक्का वायब्रेशन है-वो है दीवार और जो हल्के वायब्रेशन हैं-वो है हल्के बादल या काले बादल। वो रूहानी वायब्रेशन्स को आत्माओं तक पहुँचने नहीं देंगे। जैसे सागर में कोई जाल डालकर अनेक चीजों को एक ही बार इकठ्ठा व्र देते हैं या कहाँ भी अपनी जाल फैलाकर एक समय पर अनेकों को अपना बना लेते हैं, तो वायब्रेशन्स एक ही समय पर अनेक आत्माओं को आकर्षित कर सकते हैं। वायब्रेशन्स वायुमण्डल बनाते हैं। तो आगे की सेवा में वृत्ति द्वारा रूहानी वायब्रेशन से साथ-साथ सेवा करो, तभी फास्ट होगी। वायब्रेशन और वायुमण्डल के साथ-साथ वाणी की भी सेवा करेंगे तो एक ही समय पर अनेक आत्माओं का कल्याण कर सकते हो।

बाकी प्रोग्राम्स के लिए आगे भी बनी बनाई स्टेज का प्रयोग और ज्यादा करो, उसको और बढ़ाओ। सम्पर्क वालों द्वारा यह सहयोग लेकर इस सेवा को वृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं। सहयोगियों का सहयोग किसी भी विधि से बढ़ाते चलो तो स्वत: ही सेवा में सह-योगी बनने से सहज योगी बन जायेंगे। कई ऐसी आत्मायें होती हैं जो सीधा सहजयोगी नहीं बनेंगी लेकिन सहयोग लेते जाओ, सह-योगी बनाते जाओ। तो सहयोग में आगे बढ़ते-बढ़ते सहयोग उन्हों को योगी बना देता है। तो सहयोगी आत्माओं को और स्टेज पर लाओ, उन्हों का सहयोग सफल करो। समझा, क्या करना है? कोई एक आत्मा भी सहयोगी बनती है तो वह आत्मा प्रैक्टिकल में सहयोग लेने से, देने से, प्रत्यक्ष दुआओं से सहज आगे बढ़ती है और अनेकों की सेवा के निमित्त बनती है।

साथ-साथ वर्ष में मास मुकर करो-कुछ मास विशेष स्वयं के पुरूषार्थ वा श्रेष्ठ शक्ति धारण करने के अभ्यास के, जिसको आप तपस्या, रिट्रीट या भट्ठियाँ कहते हो। हरेक देश के प्रमाण दो-दो मास फिक्स करो, जैसी सीज़न हो। दो मास तपस्या के, दो मास छोटी-छोटी सेवाओं के, दो मास बड़े रूप की सेवाओं के- ऐसे फिक्स करो। ऐसे नहीं कि 12 मास सेवा में इतने बिजी हो जाओ जो स्व की प्रगति के लिए टाइम कम मिले। जैसा देश का सीज़न हो, कई समय ऐसे होते हैं जिसमें बाहर की विशेष सेवा नहीं कर सकते, वो समय अपने प्रगति के प्रति विशेष रूप से रखो। सारा साल सेवा नहीं करो-यह भी नहीं हो सकता, सारा साल सिर्फ तपस्या करो-यह भी नहीं हो सकता। इसलिये दोनों को साथ-साथ लक्ष्य में रखते हुए अपने स्थान के प्रमाण मुकर करो जिसमें सेवा और स्व की प्रगति-दोनों साथ-साथ चलें।

अच्छा, इस वर्ष की सीज़न की समाप्ति है। समाप्ति में क्या किया जाता है? समाप्ति में एक तो समारोह किया जाता है और दूसरा आध्यात्मिक बातों में स्वाहा किया जाता है। तो समारोह तो कल मना लिया है। (कल 10 साल से पुराने डबल विदेशी भाई-बहनों की सेरीमनी मनाई गई थी) देखने वालों ने भी मनाया या सिर्फ बैठने वालों ने, सिर्फ दस वर्ष वालों ने मनाया? सभी ने मनाया ना! अभी स्वाहा क्या करेंगे? एक बात विशेष मन-बुद्धि से स्वाहा करो, वाणी से नहीं, सिर्फ पढ़ लिया वह नहीं, मन-बुद्धि से स्वाहा करो। फिर देखो, स्व और सेवा में तीव्र गति कैसे होती है! तो आज की लहर है-किसी भी आत्मा के प्रति व्यर्थ वायब्रेशन को स्वाहा करो। स्वाहा कर सकते हो? कि थोड़ा-थोड़ा रहेगा? ऐसे नहीं समझो कि यह है ही ऐसा तो वायब्रेशन तो रहेगा ना! कैसा भी हो लेकिन आप नैगेटिव वायब्रेशन को बदल पॉजिटिव वायब्रेशन रखेंगे तो वह आत्मा भी नैगेटिव से पॉजिटिव में आ ही जायेगी, आनी ही है। क्योंकि जब तक यह व्यर्थ वायब्रेशन मन-बुद्धि में है, तो फास्ट गति की सेवा हो ही नहीं सकती।

वृत्ति द्वारा रूहानी वायब्रेशन्स फैलाने हैं। वृत्ति है रॉकेट, जो यहाँ बैठे-बैठे जहाँ भी चाहो, जितना भी पॉवरफुल परिवर्तन करने चाहो वह कर सकते हो। यह रूहानी रॉकेट है। जहाँ तक जितनों को पहुँचाने चाहो, उतना पॉवरफुल वृत्ति से वायब्रेशन, वायब्रेशन से वायुमण्डल बना सकते हो। चाहे वो रीयल में रांग भी हो लेकिन आप उसका रांग धारण नहीं करो। रांग को आप क्यों धारण करते हो? ये श्रीमत है क्या? समझना अलग चीज है। नॉलेजफुल भले बनो लेकिन नॉलेजफुल के साथ पॉवरफुल बनकर के उसको समाप्त कर दो। समझना अलग चीज है, समाना अलग चीज है, समाप्त करना और अलग चीज है। भल समझते हो-ये रांग है, ये राइट है, ये ऐसा है। लेकिन अन्दर वह समाओ नहीं। समाना आता है, समाप्त करना नहीं आता है। ज्ञान अर्थात् समझ। लेकिन समझदार उसको कहा जाता है जिसको समझना भी आता हो और मिटाना भी आता हो, परिवर्तन करना भी आता हो।

इस वर्ष में मन और बुद्धि को बिल्कुल व्यर्थ से फ्री करो। यही फास्ट गति को साधारण गति में ले आती है। इसलिए ये समाप्ति समारोह करो अर्थात् स्वाहा करो। बिल्कुल क्लीन। कैसा भी है, लेकिन क्षमा करो। शुभ भावना, शुभ कामना के वृत्ति से शुभ वायब्रेशन्स धारण करो। क्योंकि लास्ट में आगे बढ़ते हुए यही वृत्ति-वायब्रेशन आपकी सेवा बढ़ायेगी, तब जल्दी से जल्दी कम से कम 9 लाख बना सकेंगे। समझा, क्या स्वाहा करना है? व्यर्थ वृत्ति, व्यर्थ वायब्रेशन स्वाहा! फिर देखो, नेचुरल योगी और नेचर में फरिश्ता बने ही हुए हैं। इस अनुभव पर रिट्रीट करो, वर्कशॉप करो-’’कैसे होगा, नहीं; ऐसे होगा।’’ अच्छा!

अनेक बच्चों के देश-विदेश से अपने विजय के, पुरूषार्थ के और स्नेह के और भिन्न-भिन्न उत्सव के प्रति पत्र, कार्ड भी बहुत आये हैं और स्नेह की सौगात भी बहुत आई हैं। जिस स्नेह से सभी बच्चों ने याद, प्यार, सौग्त भेजी है, बापदादा ने उन हर एक बच्चे की याद, प्यार वा सौगात पद्म गुणा स्नेह सम्पन्न स्वीकार की। बापदादा के पास सबके मन के संकल्प और दिल के प्यार की दिलियां सब पहुँच गई। इसलिए मैसेन्जर बनकर लाये हो तो फिर ये याद, प्यार का रिटर्न, सन्देश सन्देशी बनकर के सबको देना। बापदादा जानते हैं कि सभी बच्चे दूर बैठे भी दिल के समीप हैं और जो सहयोग अधिकार के रूप से बच्चे बाप से मांगते हैं या कहते हैं, तो अधिकारी बच्चों को सहयोग का अधिकार प्राप्त है और अन्त तक प्राप्त होना ही है। चाहे सम्मुख हो, चाहे दूर बैठे सम्मुख हैं- सभी बच्चों को बाप का स्नेह, सहयोग, सर्व शक्तियों का अधिकार अवश्य प्राप्त है। इसलिए कभी भी कोई न कमजोर बनना, न दिल-शिकस्त बनना, न पुरूषार्थ में साधारण पुरुषार्थी बनना। बाप कम्बाइन्ड है, इसलिए उमंग-उत्साह से बढ़ते चलो। कमजोरी, दिलशि-कस्तपन बाप के हवाले कर दो, अपने पास नहीं रखो। अपने पास सिर्फ उमंग-उत्साह रखो। जो काम की चीज नहीं है वो क्यों रखते हो! इसलिए सदा उमंग-उत्साह में नाचते रहो, गाते रहो और ब्रह्मा भोजन करते रहो। सदा फरिश्ता अर्थात् देह-भान से न्यारा, निरहंकारी, देह-अहंकार के रिश्ते से न्यारा और बाप का प्यारा।

सदा स्वयं को बार-बार ओरीजिनल स्वरूप ‘मैं निराकारी हूँ’- ऐसे निश्चय और नशे में उड़ने वाले, सदा निर्माणता द्वारा महानता की प्राप्ति के अनुभवी आत्मायें, ऐसे निर्माण, सदा महान और सदा आकारी निराकारी स्थिति को नेचर और नेचुरल बनाने वाले सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का बहुत-बहुत-बहुत याद, प्यार और नमस्ते।

मधुबन निवासियों को सेवा की मुबारक देते हुए बापदादा बोले -

अच्छा, विशेष मधुबन निवासियों को बहुत-बहुत मुबारक हो। सारा सीज़न अपनी मधुरता और अथक सेवा से सर्व की सेवा के निमित्त बने। तो सबसे पहले सारी सीजन में निमित्त सेवाधारी विशेष मधुबन निवासियों को बहुत-बहुत मुबारक। मधुबन है ही मधु अर्थात् मधुरता। तो मधुरता सर्व को बाप के स्नेह में लाती है। इसलिए चाहे हाल में हो, चाहे चले गये हो लेकिन सभी को विशेष एक-एक डिपार्टमेन्ट को बापदादा विशेष मुबारक सेवा की दे रहे हैं और ‘‘सदा अथक भव, मधुर भव’’ के वरदानों से बढ़ते, उड़ते चलो।

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

ग्रुप नं. 1

अलबेलापन कमजोरी लाता है, इसलिये अलर्ट रहो

सभी संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें हो ना! संगमयुग की विशेषता क्या है जो किसी भी युग में नहीं है? संगमयुग की विशेषता है-एक तो प्रत्यक्ष फल मिलता है और एक का पद्म गुणा प्राप्ति का अनुभव इसी जन्म में ही होता है। प्रत्यक्ष फल मिलता है ना। अगर एक सेकेण्ड भी हिम्मत रखते हो तो मदद कितने समय तक मिलती रहती है! किसी एक की भी सेवा करते हो तो खुशी कितनी मिलती है! तो एक की पद्म गुणा प्राप्ति अर्थात् प्रत्यक्षफल इस संगम पर मिलता है। तो ताजा फ्रूट खाना अच्छा लगता है ना। तो आप सभी प्रत्यक्ष फल अर्थात् ताजा फल खाने वाले हो, इसीलिए शक्तिशाली हो। कमजोर तो नहीं हैं ना। सब पॉवरफुल हैं। कमजोरी को आने नहीं देना। जब तन्दरूस्त होते हैं तब कमजोरी स्वत: खत्म हो जाती है। सर्वशक्तिवान बाप द्वारा सदा शक्ति मिलती रहती है, तो कमजोर कैसे होंगे। कमजोरी आ सकती है? कभी गलती से आ जाती है? जब कुम्भकरण की नींद में अलबेले होकर सो जाते हो तब आ सकती है, नहीं तो नहीं आ सकती है। आप तो अलर्ट हो ना। अलबेले हो क्या? सभी अलर्ट हैं? सदा अलर्ट हैं? संगम-युग में बाप मिला सब-कुछ मिला। तो अलर्ट ही रहेंगे ना। जिसको बहुत प्राप्तियां होती रहती हैं वो कितना अलर्ट रहते हैं! रिवाजी बिजनेसमैन को बिजनेस में प्राप्तियां होती रहती हैं तो अलबेला होगा या अलर्ट होगा? तो आपको एक सेकेण्ड में कितना मिलता है! तो अलबेले कैसे होंगे? बाप ने सर्व शक्तियाँ दे दीं। जब सर्व शक्तियाँ साथ हैं तो अलबेलापन नहीं आ सकता है। सदा होशि-यार, सदा खबरदार रहो!

यू.के. को तो बापदादा कहते ही हैं ओ.के.। तो जो ओ.के. होगा वह जब अलर्ट होगा तब तो ओ.के. होगा ना। फाउन्डेशन पॉवरफुल है, इसलिए जो भी टाल-टालियां निकली हैं वह भी शक्तिशाली हैं। विशेष बापदादा ने-ब्रह्मा बाप ने अपने दिल से लण्डन का पहला फाउन्डेशन डाला है। ब्रह्मा बाप का विशेष लाडला है। तो आप प्रत्यक्ष फल के सदा अधिकारी आत्मायें हो। कर्म करने के पहले फल तैयार है ही। ऐसे ही लगता है ना। या मेहनत लगती है? नाचते-गाते फल खाते रहते हो। वैसे भी डबल विदेशियों को फल अच्छा लगता है ना। बापदादा भी यू.के. अर्थात् सदा ओ.के. रहने वाले बच्चों को देख हर्षित होते हैं। अपना यह टाइटल सदा याद रखना-ओ.के.। यह कितना बढ़िया टाइटल है! सभी सदा ओ.के. रहने वाले और औरों को भी अपने चेहरे से, वाणी से, वृत्ति से ओ.के. बनाने वाले। यही सेवा करनी है ना! अच्छा है। सेवा का शौक भी अच्छा है। जो भी जहाँ से भी आये हो लेकिन सभी तीव्र पुरुषार्थी और उड़ती कला वाले हो। सबसे ज्यादा खुश कौन रहता है? नशे से कहो-मैं! सिवाए खुशी के और है ही क्या! ‘खुशी’ ब्राह्मण जीवन की खुराक है। खुराक के बिना कैसे चलेंगे। चल रहे हो, तो खुराक है तभी तो चल रहे हो ना। स्थान भी बढ़ रहे हैं। देखो, पहले तीन पैर पृथ्वी लेना बड़ी बात लगती थी और अभी क्या लगता है? सहज लगता है ना। तो लण्डन ने कमाल की है ना। (अभी 50 एकड़ जमीन मिली है) हिम्मत दिलाने वाले भी अच्छे हैं और हिम्मत रखने वाले भी अच्छे हैं। देखो, आप सबकी अंगुली नहीं होती तो कैसे होता। तो सभी यू.के. वाले लक्की हैं और अंगुली देने में बहादुर हैं।

ग्रुप नं. 2

अपनी सर्व जिम्मेवारियां बाप को देकर बेफिक्र बादशाह बनो

सदा अपने को बेफिक्र बादशाह अनुभव करते हो? या थोड़ा-थोड़ा फिक्र है? क्योंकि जब बाप ने आपकी जिम्मेवारी ले ली, तो जिम्मेवारी का फिक्र क्यों? अभी सिर्फ रेस्पोंसिबिलिटी है बाप के साथ-साथ चलते रहने की। वह भी बाप के साथ-साथ है, अकेले नहीं। तो क्या फिक्र है? कल क्या होगा-ये फिक्र है? जॉब का फिक्र है? दुनिया में क्या होगा- ये फिक्र है? क्योंकि जानते हो कि-हमारे लिए जो भी होगा अच्छा होगा। निश्चय है ना। पक्का निश्चय है या हिलता है कभी ? जहाँ निश्चय पक्का है, वहाँ निश्चय के साथ विजय भी निश्चित है। ये भी निश्चय है ना कि विजय हुई पड़ी है। या कभी सोचते हो कि पता नहीं होगी या नहीं? क्योंकि कल्प-कल्प के विजयी हैं और सदा रहेंगे-ये अपना यादगार कल्प पहले वाला अभी फिर से देख रहे हो। इतना निश्चय है ना कि कल्प-कल्प के विजयी हैं। इतना निश्चय है? कल्प पहले भी आप ही थे या दूसरे थे? तो सदा यही याद रखना कि हम निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हैं। ऐसे रत्न हो जिन रत्नों को बापदादा भी याद करते हैं। ये खुशी है ना? बहुत मौज में रहते हो ना। इस अलौकिक दिव्य श्रेष्ठ जन्म की और अपने मधुबन घर में पहुंचने की मुबारक।

ग्रुप नं. 3

बाप और आप - ऐसे कम्बाइण्ड रहो जो कभी कोई अलग न कर सके

सभी अपने को सदा बाप और आप कम्बाइण्ड हैं-ऐसा अनुभव करते हो? जो कम्बाइण्ड होता है उसे कभी भी, कोई भी अलग नहीं कर सकता। आप अनेक बार कम्बाइण्ड रहे हो, अभी भी हो और आगे भी सदा रहेंगे। ये पक्का है? तो इतना पक्का कम्बाइण्ड रहना। तो सदैव स्मृति रखो कि-कम्बाइण्ड थे, कम्बाइण्ड हैं और कम्बाइण्ड रहेंगे। कोई की ताकत नहीं जो अनेक बार के कम्बा-इण्ड स्वरूप को अलग कर सके। तो प्यार की निशानी क्या होती है? (कम्बाइण्ड रहना) क्योंकि शरीर से तो मजबूरी में भी कहाँ-कहाँ अलग रहना पड़ता है। प्यार भी हो लेकिन मजबूरी से कहाँ अलग रहना भी पड़ता है। लेकिन यहाँ तो शरीर की बात ही नहीं। एक सेकेण्ड में कहाँ से कहाँ पहुंच सकते हो! आत्मा और परमात्मा का साथ है। परमात्मा तो कहाँ भी साथ निभाता है और हर एक से कम्बाइण्ड रूप से प्रीत की रीति निभाने वाले हैं। हरेक क्या कहेंगे-मेरा बाबा है। या कहेंगे-तेरा बाबा है? हरेक कहेगा-मेरा बाबा है! तो मेरा क्यों कहते हो? अधिकार है तब ही तो कहते हो। प्यार भी है और अधिकार भी है। जहाँ प्यार होता है वहाँ अधिकार भी होता है। अधिकार का नशा है ना। कितना बड़ा अधिकार मिला है! इतना बड़ा अधिकार सतयुग में भी नहीं मिलेगा! किसी जन्म में परमात्म-अधिकार नहीं मिलता। प्राप्ति यहाँ है। प्रालब्ध सतयुग में है लेकिन प्राप्ति का समय अभी है। तो जिस समय प्राप्ति होती है उस समय कितनी खुशी होती है! प्राप्त हो गया-फिर तो कॉमन बात हो जाती है। लेकिन जब प्राप्त हो रहा है, उस समय का नशा और खुशी अलौकिक होती है! तो कितनी खुशी और नशा है! क्योंकि देने वाला भी बेहद का है। तो दाता भी बेहद का है और मिलता भी बेहद का है। तो मालिक किसके हो-हद के या बेहद के? तीनों लोक अपने बना दिये हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन हमारा घर है और स्थूल वतन में तो हमारा राज्य आने वाला ही है। तीनों लोकों के अधिकारी बन गये! तो क्या कहेंगे- अधिकारी आत्मायें। कोई अप्राप्ति है? तो क्या गीत गाते हो? (पाना था वह पा लिया) पाना था वह पा लिया, अभी कुछ पाने को नहीं रहा। तो ये गीत गाते हो? या कोई अप्राप्ति है-पैसा चाहिए, मकान चाहिए! नेता की कुर्सी चाहिए? कुछ नहीं चाहिए। क्योंकि कुर्सी होगी तो भी एक जन्म का भी भरोसा नहीं और आपको कितनी गारन्टी है? 21 जन्म की गारन्टी है। गारन्टी-कार्ड माया तो चोरी नहीं कर लेती है? जैसे यहाँ पासपोर्ट खो लेते हैं तो कितनी मुश्किल हो जाती है! तो गारन्टी-कार्ड माया तो नहीं ले लेती है? छुपा-छुपी करती है। फिर आप क्या करते हो? लेकिन ऐसे शक्तिशाली बनो जो माया की हिम्मत नहीं।

ग्रुप नं. 4

त्रिकालदर्शी बन बनकर हर कर्म करो

सभी अपने को तख्तनशीन आत्मायें अनुभव करते हो? अभी तख्त मिला है या भविष्य में मिलना है, क्या कहेंगे? सभी तख्त पर बैठेंगे? (दिलतख्त बहुत बड़ा है) दिलतख्त तो बड़ा है लेकिन सतयुग के तख्त पर एक समय में कितने बैठेंगे? तख्त पर भले कोई बैठे लेकिन तख्त अधिकारी रॉयल फैमिली में तो आयेंगे ना। तख्त पर इकट्ठे तो नहीं बैठ सकेंगे! इस समय सभी तख्तनशीन हैं। इसलिए इस जन्म का महत्व है। जितने चाहें, जो चाहें दिलतख्तनशीन बन सकते हैं। इस समय और कोई तख्त है? कौनसा है? (अकालतख्त) आप अविनाशी आत्मा का तख्त ये भृकुटी है। तो भृकुटी के तख्तनशीन भी हो और दिलतख्तनशीन भी हो। डबल तख्त है ना! नशा है कि मैं आत्मा भृकुटी के अकालतख्तनशीन हूँ! तख्तनशीन आत्मा का स्व पर राज्य है, इसीलिए स्वराज्य अधिकारी हैं। स्वराज्य अधिकारी हूँ-यह स्मृति सहज ही बाप द्वारा सर्व प्राप्ति का अनुभव करायेगी। तो तीनों ही तख्त की नॉलेज है। नॉलेजफुल हो ना! पॉवरफुल भी हो या सिर्फ नॉलेजफुल हो? जितने नॉलेजफुल हो, उतने ही पॉवरफुल हो। या नॉलेज-फुल अधिक, पॉवरफुल कम? नॉलेज में ज्यादा होशियार हो! नॉलेजफुल और पॉवरफुल-दोनों ही साथ-साथ। तो तीनों तख्त की स्मृति सदा रहे।

ज्ञान में तीन का महत्व है। त्रिकालदर्शी भी बनते हैं। तीनों काल को जानते हो। या सिर्फ वर्तमान को जानते हो? कोई भी कर्म करते हो तो त्रिकालदर्शी बनकर कर्म करते हो या सिर्फ एकदर्शी बनकर कर्म करते हो? क्या हो-एक दर्शी या त्रिकालदर्शी? तो कल क्या होने वाला है-वह जानते हो? कहो-हम यह जानते हैं कि कल जो होगा वह बहुत अच्छा होगा। ये तो जानते हो ना! तो त्रिकालदर्शी हुए ना। जो हो गया वो भी अच्छा, जो हो रहा है वह और अच्छा और जो होने वाला है वह और बहुत अच्छा! यह निश्चय है ना कि अच्छे से अच्छा होना है, बुरा नहीं हो सकता। क्यों? अच्छे से अच्छा बाप मिला, अच्छे से अच्छे आप बने, अच्छे से अच्छे कर्म कर रहे हो। तो सब अच्छा है ना। कि थोड़ा बुरा, थोड़ा अच्छा है? जब मालूम पड़ गया कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो श्रेष्ठ आत्मा का संकल्प, बोल, कर्म अच्छा होगा ना! तो यह सदा स्मृति रखो कि-कल्याणकारी बाप मिला तो सदा कल्याण ही कल्याण है। बाप को कहते ही हैं विश्व-कल्याणकारी और आप मास्टर विश्व-कल्याणकारी हो! तो जो विश्व का कल्याण करने वाला है उसका अकल्याण हो ही नहीं सकता। इसलिए यह निश्चय रखो कि हर समय, हर कार्य, हर संकल्प कल्याणकारी है। संगमयुग को भी नाम देते हैं-कल्याणकारी युग। तो अकल्याण नहीं हो सकता। तो क्या याद रखेंगे? जो हो रहा है वह अच्छा और जो होने वाला वह बहुत-बहुत अच्छा। तो यह स्मृति सदा आगे बढ़ाती रहेगी। अच्छा, सभी कोने-कोने में बाप का झण्डा लहरा रहे हो। सभी बहुत हिम्मत और तीव्र पुरूषार्थ से आगे बढ़ रहे हो और सदा बढ़ते रहेंगे। फ्युचर दिखाई देता है ना। कोई भी पूछे- आपका भविष्य क्या है? तो बोलो-हमको पता है, बहुत अच्छा है।

ग्रुप नं. 5

स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है - इस नशे में रहकर हर कर्म करो

सभी तीन बिन्दु के रहस्य को जानते हो? जानते हो या प्रैक्टिकल में भी अनुभवी हो? तीन बिन्दी लगानी आती हैं? या कभी भूल जाते हो, कभी लगाते हो? क्योंकि ये तीनों ही याद रखना आवश्यक है। अगर एक बाप बिन्दु को याद करो तो दोनों और बिन्दु सहज ही याद आ जायेंगे। तो बाप को याद करना सहज है या मुश्किल है? सहज है तो सदा क्यों नहीं? माया पॉवरफुल है या मास्टर सर्वशक्तिवान पॉवरफुल? मास्टर तो और ही तेज होता है। फिर माया पॉवरफुल कैसे हो जाती है? (अपनी कमजोरी के कारण) कमजोरी कब तक रहनी है? फिर दूसरे वर्ष भी तो नहीं कहेंगे? चाहे माया कितना भी शक्तिशाली हो लेकिन सर्वशक्तिवान बाप से कोई शक्तिशाली है नहीं। तो भूल जाते हो कि हम मास्टर हैं। क्या यह कभी भूलते हो कि मैं फलानी हूँ? शरीर नहीं भूलते हो और अपने आपको भूल जाते हो! ये वन्डर (Wonder; आश्यर्च) नहीं है! तो आप वन्डर करते हो? ये वन्डर नहीं करना। सदा बाप और आप साथ हैं, कम्बाइन्ड हैं, तो भूल कैसे सकते हैं। बाप से अलग रहते हो क्या? तो यही कहो कि न भूलते हैं, न भूलेंगे। बाप से प्यार है ना। तो सबसे प्यारा भूल सकता है? भूलना चाहें तो भी नहीं भूल सकते। जब अनुभव कर लिया कि बाप ही संसार है, तो संसार के सिवाए और कुछ है क्या? फिर भूलते क्यों हो? खेल करते हो? कहो-भूल नहीं सकते। सोचो कि सारे कल्प में बाप अभी मिला है, फिर मिल नहीं सकता। गोल्डन एज में भी बाप नहीं होगा। ब्रह्मा बाप साथ होगा। शिव बाप अभी मिलते हैं, तो भूल कैसे जायेंगे? तो अभी क्या कहेंगे-भूलना मुश्किल है या याद करना मुश्किल है? (जो कम्बाइन्ड है उसको अलग करना मुश्किल है)

मास्टर सर्वशक्तिवान बन हर शक्ति को कार्य में लगाओ। सर्व शक्तियों जो मिली हैं वह हैं ही समय पर यूज़ करने के लिए। अगर समय पर कोई चीज़ काम में नहीं आई तो उस चीज का महत्व ही क्या रहा! समय पर यूज़ करते-करते अभ्यासी हो जायेंगे। मालिक बनकर शक्तियों को ऑर्डर करो। मालिक बनकर ऑर्डर करेंगे तो शक्तियाँ मानेंगी भी। अगर कमजोर होकर ऑर्डर करेंगे तो नहीं मानेंगी। शक्तियाँ आपके ऑर्डर को मानने के लिए सदा तैयार हैं, सिर्फ मालिकपन नहीं भूलो। बापदादा सभी बच्चों को मालिक बनाते हैं, कमजोर नहीं बनाते। सभी राजयोगी हो, कमजोर योगी तो नहीं हो ना। राजा कमजोर होता है क्या? राजयोगी हो। बाप को यही खुशी है कि हर बच्चा राजा है, कोई प्रजा नहीं है। सारे कल्प में ऐसा कोई नहीं होगा जिसके इतने सारे बच्चे राजा हों! तो सब राजा हो। स्वराज्य अधिकारी बन गये। तो यही खुशी और नशा रखो कि हम सभी स्वराज्य अधिकारी हैं। कोई पूछे-स्वराज्य मिला है? तो क्या कहेंगे? कहो- स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। ये नशा रखो कि स्वराज्य बर्थ-राइट है। बर्थ-राइट कोई छीन नहीं सकता। अभी सभी जो भी आये हो-अगले वर्ष तीन गुणा ज्यादा संख्या बढ़ाना। देखेंगे-कौन ज्यादा बड़ी माला बनाकर लाते हैं। सारे विश्व की आत्मायें सुख-शान्ति की भीख मांगने के लिये आपके सामने आनी हैं। आप दाता के बच्चे मास्टर दाता सबको मालामाला करेंगे। क्योंकि सिवाए एक बाप के और कहाँ जायेंगे? तो अपने सर्व खज़ानों से भण्डारे भरपूर करते जाओ-जो कोई भी आवे तो खाली हाथ नहीं जाये, भरपूर होकर जाये। ये नज़ारा आगे चलकर अनुभव करेंगे।

विदाई के समय सभी ने बापदादा को बधाइयां दीं और गीत गाया। रेस्पाण्ड देते हुए बापदादा बोले -

सभी सन्तुष्ट हुए। अच्छा, जो सदा सन्तुष्ट हैं वह ताली बजाओ। (सभी ने खूब तालियां बजाई) बाप को हर बच्चा अति-अति प्यारा है। यह सीजन निर्विघ्न और उत्साह भरी उत्सव सम्पन्न समाप्त हुई। कितने उत्सव मनाये हैं? देखो, शिवरात्रि मनाई, होली मनाई और 10 वर्ष वालों के कितने फंक्शन मनाये! तो कितने उत्सव मनाये? तो यह सीजन कौनसी रही ? तो सदा ऐसे उत्साह में रहते उत्सव मनाते उड़ते रहना। उत्सव अच्छा लगता है ना। अच्छा लगता है? तो सदा मनाते रहना। बाप साथ है तो सारा परिवार बीज में है। जब भी अपने को अकेला समझो तो मधुबन में पहुंच जाना बिना टिकेट। कौन-सी प्लेन मिलेगी? दिव्य बुद्धि के विमान में बिना टिकेट आ सकते हो। यह प्लेन तो सबके पास है ना। एवररेडी है। इस प्लेन की कभी स्ट्राइक (हड़ताल) भी नहीं होगी और लेट भी नहीं आयेगा, टाइम पर आयेगा। अच्छा!

बाप अकेला कुछ नहीं कर सकता। आप सबका बाप के साथ धन्यवाद है।